1935 के भारत सरकार कानून के अन्तर्गत्त संघीय न्यायालय की स्थापना की गई थी जिसमें 1 chief justice और 2 justices होते थे जिन्हें गवर्नर जनरल नियुक्त करता था लेकिन ये Supreme Court नहीं था क्योंकि इसके निर्णय को लंदन स्थित प्रीबी कौंसिल में चुनौती दो जा सकती थी परन्तु देश के स्वतंत्र होते ही हमारा प्रीती कौंसिल से नाता दूट गया इसलिए यही Federal court supreme court हो गया।
26 जनवरी, 1950 क्रो राष्ट्रपति ने संविधान का उत्घाटन किया और उसी दिन राष्ट्रपति के आदेशानुसार संघीय न्यायालय का नाम Supreme Court हो गया ।
Supreme Court Chief Justice and Judiciary in hindi |
Supreme Court में 1 chief justice और 30 अन्य जज है संसद अपने कानून से इस संख्या को बढा सकती है । राष्ट्रपति chief justice को नियुक्त करते है फिर उसके परामर्श से अन्य जजों को नियुक्त करते है
अनुच्छेद 124(2) प्रधान जज से सदैव परामर्श लिया जायेगा लेकिन ये परामर्श लिखित रूप में बाध्यकारी नही है । सुभाष शर्मा मामला 1998 में Supreme Court ने कहा कि सदैव का मतलब प्रभावी व बाध्यकारी है तब ये समस्या पैदा हुईं की ये निर्णय अनु. 74( 1) से टकराता है । लिखा है कि राष्ट्रपति अपने मंत्रियों से परामर्श लेगा जो बाध्यकारी होगा । इसलिए राष्ट्रपति नारायणन ने Supreme Court से परामर्श मांगा तो न्यायालय ने कहा कि Chief Justice अपने नीचे 4 जजों की समिति बनाएगा और ये समिति 4 की सहमति से कोई नाम देगी और वह सिफारिश राष्ट्रपति को बाध्यकारी होगी इसलिए अब ये स्थिति बहुत उलझी हुई है ।Supreme Court का जज होने के लिए दो योग्यताएँ चाहिए।
1 भारत का नागरिक हो ।
2 वह उच्च न्यायालय व न्यायालयों में कम से कम 5 वर्ष जज रह चुका हो । या उच्च न्यायालय व न्यायालर्यों में 10 वर्ष वकालत की हो । या राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का विशेषज्ञ हो ।
ये जज 65 वर्ष की आयु पर रिटायर हो जाते हैं कोई जज किसी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है लेकिन दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर किसी जज को महाभियोग से हटाया जा सकता है ।
1968 के जज जाँच पड़त्ताल कानून के अनुसार ऐसा प्रस्ताव लोकसभा मे कम से कम 100 तथा राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर से आना चाहिए ये प्रस्ताव अध्यक्ष को दिया जाएगा जो तुरन्त 3 जजों की जॉच समिति बनायेगा उनकी रिपोर्ट के आधार पर सदन में चर्चा होगी ऐसा प्रस्ताव विशेष बहुमत से दोनों सदनों में पास होना चाहिए और समुचित सदन की संख्या का आधे से अधिक व मतदान करने वाले की 2/ 3 संरव्या होना चाहिए। अगर ऐसा प्रस्ताव संसद से पास हो जाये तो उसे विशेष सम्बोधन कहा जायेगा जो राष्ट्रपति को भेजा जायेगा और वे उस जज को तुरन्त बर्खास्त कर देंगे ।
2011 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के जज सौमित्र सैन के खिलाफ ऐसी कार्यवाही की गई राज्यसभा ने ऐसा प्रस्ताव पास कर दिया लेकिन सेन ने तुरन्त त्यागपत्र दे दिया इसलिए उसे लोकसभा में पास नहीं करवाया गया ।
Supreme Court का अधिकार क्षेत्र तीन प्रकार के अधिकार क्षेत्र हैं
(1 ) मौलिक प्रकार का क्षेत्र - बिल्कुल नये मुकदमे सुनना । यदि कोई राज्यों के बीच या केंद -राज्य के बीच कोई विवाद हो तो उसे Supreme Court ही तय कर सकती है ।
(2 ) अपीलीय अधिकार क्षेत्र -भारत में 24 उच्च न्यायाल है । उच्च न्यायालय के निर्णय को Supreme Court में चुनौती दी जा सकती है त्तब Supreme Court उस निर्णय को बरकरार, पलट, रद्द कर सकता है लेकिन Supreme Court का निर्णय अंतिम है । अपील करने से पहले ऐसी अनुमति लेनी ज़रूरी है ये अनुमति संबंधित हाई कोर्ट या Supreme Court देता है ।Supreme Court के निर्णय के खिलाफ अपील दायर नहीं हो सकती है ।
अनुच्छेद 137 :संशोधन याचिका दायर की जा सकती है तब हो सक्ता है कि न्यायालय अपने निर्णय पर पुनर्विचार को।
परामर्श संबंधित अधिकार क्षेत्र- अनु. 143 के अनुसार राष्ट्रपति किसी कानूनी, सार्वजनिक महत्त्व के किसी तथ्य के बारे में Supreme Court से परामर्श मांग सकते है । इसी को संदर्भ मामला कहते है । तब क्रोर्ट उस मामले की सुनवाई करती है फिर अनुच्छेद 143(2) न्यायालय अपनी राय राष्ट्रपति को भेज देता है ।
लेकिन बाबरी मस्जिद संदर्भ मामला 1995 में Supreme Court ने सभी संबंधित पक्षों को सुना और फिर अपना परामर्श देने से इंकार कर दिया । इस प्रकार Supreme Court ने एक नया दृष्टान्तस्थापित किया ।
ConversionConversion EmoticonEmoticon